पटना। बिहार में कांग्रेस अब अपनी राजनीति को नए सिरे से खड़ा करने की कोशिश कर रही है। लंबे समय तक RJD के साथ गठबंधन में रहने के बाद अब पार्टी खुद को एक मजबूत विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रही है। इसी रणनीति के तहत कांग्रेस ने युवा नेतृत्व को आगे किया है।
कांग्रेस ने कृष्णा अल्लावरु को बिहार का प्रभारी बनाया है, अलका लांबा को महिला कांग्रेस की जिम्मेदारी दी गई है और कन्हैया कुमार को जमीनी स्तर पर संगठन को सक्रिय करने का काम सौंपा गया है। इन सभी को पप्पू यादव का भी समर्थन मिल रहा है, जिससे कांग्रेस को एक नई ताकत मिल रही है।
RJD की छाया से बाहर आने की कोशिश
अब तक बिहार में कांग्रेस लालू यादव के प्रभाव में रही है, लेकिन अब वह अपनी स्वतंत्र पहचान बनाना चाहती है। कांग्रेस ने यह संकेत दिया है कि वह 243 सीटों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की तैयारी कर रही है।
इसके तहत, पार्टी ने survey शुरू कर दिया है ताकि उन्हीं नेताओं को टिकट दिया जाए, जिनका जनता में मजबूत जनाधार है। इसके अलावा, booth level से लेकर संगठन के हर स्तर पर नए नेतृत्व को जगह देने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
RJD और तेजस्वी यादव के लिए नई चुनौती
कांग्रेस की इस आक्रामक रणनीति से RJD के भीतर बेचैनी बढ़ गई है। अगर कांग्रेस बिहार में 100 सीटों पर भी दमखम से लड़ी, तो यह न सिर्फ कांग्रेस बल्कि तेजस्वी यादव के लिए भी चुनौती बन सकता है।
इसके अलावा, नीतीश कुमार द्वारा अपने बेटे को राजनीति में सक्रिय करने से भी नए राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं। कांग्रेस और RJD को अब तय करना होगा कि वे साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे या अलग-अलग।
कांग्रेस का अगला कदम?
फिलहाल, कांग्रेस पूरे बिहार में survey कर रही है ताकि हर सीट की वास्तविक स्थिति का आकलन किया जा सके। पार्टी चाहती है कि लोकसभा चुनाव 2029 से पहले बिहार में उसकी स्थिति मजबूत हो।
कांग्रेस की मौजूदा रणनीति से यह साफ है कि वह गठबंधन सहयोगी बनकर नहीं रहना चाहती, बल्कि अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की कोशिश कर रही है।
आपकी राय?
क्या कांग्रेस की यह रणनीति सफल होगी या फिर RJD और अन्य पार्टियों के दबाव में कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पाएगी? Comment में अपनी राय दें!