आज कोर्ट में मस्जिद कमेटी अपनी आपत्ति जमा करा सकती है, जो कोर्ट के उस निर्णय के विरुद्ध होगी जिसमें उसने सिर्फ सफाई की अनुमति दी है, न कि रंगाई-पुताई की। इसके बाद कोर्ट मंगलवार, 4 मार्च को इस संबंध में अंतिम निर्णय देगा। सबकी निगाहें इस फैसले पर टिकी हैं।
मस्जिद की रंगाई-पुताई पर विवाद क्यों?
संभल की शाही जामा मस्जिद पर पिछले तीन महीनों से विवाद के बादल छाए हुए हैं। मस्जिद कमेटी ने डीएम के माध्यम से पत्र देकर एएसआई से अनुमति मांगी थी, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जिसने तीन सदस्यीय कमेटी से मस्जिद का निरीक्षण कर यह रिपोर्ट देने को कहा कि रंगाई-पुताई जरूरी है या नहीं।
हाईकोर्ट और एएसआई की रिपोर्ट
28 फरवरी को कोर्ट ने रंगाई-पुताई पर रोक लगा दी और कहा कि सिर्फ सफाई की जाएगी। हालांकि, मस्जिद पक्ष को 3 मार्च तक अपनी आपत्ति दर्ज कराने की छूट दी गई, जिस पर 4 मार्च को अंतिम निर्णय होगा।
हिंदू और मुस्लिम पक्ष की प्रतिक्रिया
हिंदू संगठनों ने रंगाई-पुताई का विरोध किया और प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि रमज़ान पवित्र महीना है, और मस्जिद की सफाई एवं रंगाई-पुताई पारंपरिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
शाही जामा मस्जिद विवाद की पृष्ठभूमि
19 नवंबर को जिला कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका पर मस्जिद का सर्वे कराने का आदेश दिया। कोर्ट के आदेश के तुरंत बाद सर्वे टीम 2 घंटे के अंदर मस्जिद पहुंच गई। सर्वे शुरू होते ही मस्जिद के बाहर भारी भीड़ इकट्ठा हो गई, जो इसका विरोध कर रही थी।
24 नवंबर को सुबह 6 बजे सर्वे टीम दोबारा मस्जिद पहुंची। इस पर जामा मस्जिद कमेटी के सदर जफर अली ने आरोप लगाया कि उन्हें रात में देर से सूचना दी गई थी।
लेकिन 24 तारीख को संभल के इतिहास में एक काले पन्ने के रूप में जोड़ा गया। सर्वे के विरोध में हजारों लोग जामा मस्जिद पर एकत्र हो गए और पुलिस से हिंसक झड़प हो गई। इस घटना में 4 युवकों की मौत हो गई। परिजनों का आरोप था कि पुलिस ने गोली चलाई, जबकि पुलिस का कहना था कि उन्हें भीड़ में ही कुछ असामाजिक तत्वों ने मारा।
यह विवाद धीरे-धीरे राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गया। कई राजनीतिक दलों ने इस पर बयान दिए और अब तक इस मामले पर राजनीति हो रही है।
लगता है सत्ता को सम्भल में अगली अयोध्या दिखाई दे रही है।