राजनीति में कब कौन किसके साथ हो जाए और कब कौन किसका साथ छोड़ दे कुछ कहा नहीं जा सकता। इस तरह पार्टियों का मिलना-बिछड़ना, टूटना-जुड़ना जैसी घटनाओं को चाणक्य नीति भी कहते हैं, और अवसरवादीता की राजनीति भी कहते हैं। सबकुछ सत्ता के लालच के कारण होता है। ऐसी घटनाओं से केंद्रीय राजनीति की दोनों गठबंधन NDA गठबंधन और INDIA गठबंधन चिंतित हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कई पार्टियां अपने ही गठबंधन के उम्मीदवारों के खिलाफ लड़ रही हैं। INDIA गठबंधन में तो टूट के सुर उभरे, लेकिन एनडीए में कुछ भी खुलकर नहीं कहा गया। बिहार में अलग ही खेल खेला जा रहा है, NDA लगभग टूट चुका है। लोक जनशक्ति पार्टी के पशुपति पारस गुट ने इसका खुलकर विरोध किया है। खरमास के बाद जिस तरह से उन्होंने दही चूड़ा भोज की राजनीति की, वह भाजपा के सर्वोच्च नेतृत्व के लिए चुनौती है, इस दही चूड़ा भोज में लालू और तेजस्वी को आमंत्रित करके उन्होंने भविष्य की राजनीति के संकेत दे दिए हैं। लालू भी इसमें शामिल हुए। हालांकि नीतीश कुमार को भी आमंत्रित किया गया था। इस घटना को एनडीए में टूट के तौर पर देखा जा रहा है।
