क्या इजराइल जीत कर भी हारा है और हमास हारकर भी जीता?

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इस सदी में अगर युद्धों के दौरान सबसे बड़ी मानवीय क्षति हुई है तो वह इजरायल और हमास के बीच हुए युद्ध, गाजा में हुई है। इस युद्ध में 46,000 से ज़्यादा मौतें हुईं, जिनमें से 18,000 से ज़्यादा मासूम बच्चे थे। गाजा में 70% से ज़्यादा इमारतें नष्ट हो गईं। इसमें अस्पताल और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी शामिल हैं। गाजा खंडहर में तब्दील हो गया। हालाँकि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में भी काफ़ी तबाही हुई है, लेकिन वहाँ हताहतों की संख्या इतनी ज़्यादा नहीं है। आख़िरकार दोनों (इजरायल और हमास) को समझौता करना पड़ा। यह सिर्फ़ गाजा और इजरायल के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए शांति की ख़बर है। क्या कोई बताएगा कि उन परिवारों का क्या होगा जिनके परिवार के सदस्य इस दुनिया से चले गए, उनके परिवार के सदस्यों का भविष्य क्या होगा? इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे सकता। यह उन लोगों के लिए भी ख़ुशी की ख़बर है जिनके लोग एक-दूसरे के यहाँ कैदी थे, अब बिछड़े हुए लोग अपने परिवारों से मिल पाएँगे। कॉरपोरेट और बड़ी कंपनियों को भी पैसे बनाने का मौक़ा मिलेगा। क्योंकि गाजा का पुनर्निर्माण होना है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने भी यह निर्णय दिया है कि इजरायल ने फिलिस्तीनी हिस्से पर अवैध कब्जा कर रखा है। लेकिन इस निर्णय को कौन लागू करायेगा ? पूरी दुनिया मिलकर इस युद्ध को क्यों नहीं रोक पाई? या रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को रुकवाने के लिए कोई पहल क्यों नहीं की जा रही है? इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गुटबन्दी जिम्मेदार है। सवाल यह है कि इस युद्ध से किसे क्या मिला, कौन जीता और कौन हारा।

अगर इजराइल के नजरिए से देखा जाए तो यह समझौता उनके हक में नहीं लगता। इजराइल ने फिलिस्तीन पर 85 हजार टन बम गिराए, 50 हजार से ज्यादा मिसाइलें दागीं। इन हमलों में गाजा की 70 फीसदी से ज्यादा इमारतें तबाह हो गईं। 18 हजार बच्चों समेत 46788 नागरिक मारे गए। इजराइल को करीब 6 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। सवाल यह है कि इजरायल हमास को खत्म क्यों नहीं कर सका और अपने बंदी नागरिकों को क्यों नहीं छुड़ा सका, अपने बंदी नागरिकों को छुड़ाने के लिए उसे हमास जैसे कमजोर और छोटे समूह के साथ समझौता करना पड़ा।

इजराइल जैसे मजबूत देश की छवि धूमिल हुई। उसे उन लोगों के सामने झुकना पड़ा जिन्हें वह आतंकवादी कहता था, जिन्हें खत्म करने की उसने क़सम खायी थी. जबकि अमेरिका भी इजराइल के समर्थन में था। और उसे हमास की ही शर्तों के आगे झुकना पड़ा।

कई इस्लामिक देशों में जश्न मनाया जा रहा है कि इजराइल को झुकना पड़ा, लोग कह रहे हैं, इस्माइल हनिया, हसन नसरुल्लाह और याह्या शिनवार के साथ हजारों शहीदों की शहादत सार्थक साबित हुई।

सवाल हमास भी है कि अगर समझौता करना ही था तो 15 महीने बाद क्यों? इतनी बड़ी मानवीय त्रासदी के बाद क्यों? हजारों लोगों की मौत और लाखों लोगों की जिंदगीयां बर्बाद करने के बाद उन्होंने समझौता क्यों किया? गाजा में 70% बुनियादी ढांचा नष्ट हो चुका है। करीब 160000 करोड़ का नुकसान हुआ है।

इजराइल कह सकता है कि उसने हमास प्रमुख इस्माइल हनिया और याह्या शिनवार , हिज्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरुल्लाह और हजारों अन्य आतंकवादियों को मार गिराया, हिज्बुल और हमास के कई ठिकानों को नष्ट कर दिया, गाजा को जमींदोज कर दिया। लेकिन अब क्या गारंटी है कि हमास फिर से संगठित नहीं होगा ? यानी जिस मकसद से हमास ने 7 अक्टूबर 2023 को इजराइल पर हमला किया और उसके नागरिकों को बंदी बनाया, वह कामयाब हो गया। उसने इजराइली नागरिकों के बदले अपने लोगों को आजाद कराया, जिन्हें इजराइल ने बंदी बना लिया था। हमास की यह पहले दिन से ही रणनीति थी। इस तरह हमास कामयाब रहा, हालांकि इसके बदले में उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती।

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