शाहरुख़ ख़ान को “राष्ट्रीय सम्मान या कतर एहसान?”

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शाहरुख़ ख़ान को ‘जवान’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार: सिनेमा या कूटनीति?

शाहरुख़ ख़ान को उनकी ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘जवान’ के लिए वर्ष 2024 का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (श्रेष्ठ अभिनेता) दिया गया है। यह फैसला पहली नजर में भले ही एक सिनेमाई उपलब्धि जैसा लगे, लेकिन जानकार इसे NDA सरकार की ओर से कतर प्रकरण में निभाई गई भूमिका के लिए “रिटर्न गिफ्ट” के रूप में देख रहे हैं।

कतर प्रकरण और शाहरुख़ की भूमिका

अप्रैल 2024 में, कतर की जेल में बंद कुछ पूर्व भारतीय नौसैनिकों की रिहाई का मामला सुर्खियों में आया था। जब कतर सरकार द्वारा उन्हें मौत की सज़ा दी गई, तब भारत में राजनयिक प्रयास तेज़ हुए। सूत्रों के अनुसार, शाहरुख़ ख़ान ने निजी स्तर पर कतर के अमीर के साथ संपर्क साधा और अपने संबंधों का उपयोग करते हुए इनकी रिहाई में निर्णायक भूमिका निभाई।

हालाँकि सरकार ने इस पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया, लेकिन India Today और HT जैसे मीडिया समूहों ने इस भूमिका की पुष्टि अप्रत्यक्ष रूप से की थी।

क्या यह पुरस्कार एक ‘कूटनीतिक धन्यवाद’ है?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राष्ट्रीय पुरस्कार सिर्फ अभिनय की श्रेष्ठता पर आधारित नहीं होते, कई बार यह भी देखा गया है कि वे किसी खास ‘संदेश’ या ‘राजनीतिक भावना’ को व्यक्त करने का माध्यम होते हैं। NDA सरकार का “किसी का एहसान न रखने” वाला रुख यहां भी दिखाई देता है।

‘जवान’ का प्रभाव और रिकॉर्ड

‘जवान’ को भारत की अब तक की सबसे अधिक कमाई करने वाली हिंदी फिल्मों में शुमार किया गया है। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर ₹1100 करोड़ से अधिक की कमाई की और इसे पैन-इंडिया हिट कहा गया।

इसमें शाहरुख़ ख़ान ने दोहरी भूमिका निभाई — एक सिस्टम से लड़ते आम आदमी और दूसरा देशभक्त जवान के रूप में। फिल्म की कहानी, निर्देशन और विशेष रूप से राजनीतिक संवादों ने युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल की।

राजनीति और बॉलीवुड: एक पुराना रिश्ता

भारत में सिनेमा और राजनीति का संबंध नया नहीं है। चाहे वो मनोज कुमार की देशभक्ति वाली फिल्में हों या आमिर खान की YouTube पर आमिर की रणनीति से बदलेगा फिल्म बाजार जैसी चालें — सरकारें सिनेमा के प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकतीं।

इसी प्रकार, शाहरुख़ को यह पुरस्कार सिर्फ उनके अभिनय के लिए नहीं बल्कि कतर जैसे संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय मुद्दे में उनके योगदान के लिए भी माना जा सकता है।

फिल्म पुरस्कार: योग्यता या कूटनीति?

इस पूरे घटनाक्रम के बाद बहस तेज हो गई है कि राष्ट्रीय पुरस्कार वास्तव में सिनेमा की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं या वे किसी ‘राजनीतिक आभार’ का माध्यम बन गए हैं?

बॉलीवुड के कई कलाकार जैसे कि कंगना रनौत, अक्षय कुमार और अनुपम खेर पहले भी सरकार के करीबी माने जाते रहे हैं। ऐसे में शाहरुख़ ख़ान का यह सम्मान नई राजनीतिक व्याख्याओं को जन्म देता है।

जनता की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर #SRKNationalAward ट्रेंड कर रहा है। कुछ लोग शाहरुख़ की अभिनय क्षमता का लोहा मानते हैं, जबकि कुछ इसे ‘पुरस्कार का राजनीतिकरण’ बता रहे हैं।

“शाहरुख़ का योगदान फिल्म से कहीं अधिक है, उन्होंने देश के बेटों की जान बचाई,” — एक ट्विटर यूज़र।

“सरकार अब पुरस्कारों का इस्तेमाल आभार व्यक्त करने के लिए कर रही है,” — एक अन्य यूज़र।

सरकार की चुप्पी और संकेत

NDA सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम पर आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सरकार से जुड़े कई मंत्रियों और प्रवक्ताओं ने शाहरुख़ की तारीफों के पुल बांधे हैं। यह सरकार का अप्रत्यक्ष संदेश हो सकता है कि जो भी देशहित में भूमिका निभाएगा, वह ‘सम्मान’ का पात्र बनेगा।

सिनेमा का पतन और ज़िम्मेदार दर्शक

कई विश्लेषकों का मानना है कि आजकल सिनेमा में सिनेमा का पतन: जिम्मेदार दर्शक भी हैं! — जैसी स्थिति बन चुकी है। ऐसे में ‘जवान’ जैसी फिल्मों को पुरस्कार मिलने से यह संकेत जाता है कि सरकारें कंटेंट और मैसेज दोनों पर नज़र रखती हैं।

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निष्कर्ष

शाहरुख़ ख़ान को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार सिर्फ एक कलाकार की जीत नहीं है, बल्कि यह एक राजनयिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक संकेत भी है। यह दिखाता है कि सिनेमा केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं बल्कि राष्ट्रीय हितों में एक ‘सॉफ्ट पावर’ बन चुका है।

चाहे यह सम्मान कला के लिए हो या किसी कूटनीतिक भूमिका के लिए — इसमें दो राय नहीं कि शाहरुख़ अब केवल ‘बॉलीवुड किंग’ नहीं, बल्कि भारत की छवि के ब्रांड एम्बेसडर बन चुके हैं।

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