वर्ष 2023-24 में भारत और अमेरिका के बीच 119.71 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। जिसमें भारत का व्यापार अधिशेष 35.31 अरब डॉलर रहा। यानी भारत का निर्यात आयात से ज्यादा रहा, लेकिन ट्रंप के शपथ लेने के बाद से ही उनके बयानों और भविष्य के व्यापार को लेकर भारत और अमेरिका के बीच तनाव का माहौल बन गया है। ट्रंप ने 20 जनवरी 2025 को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। कड़ाके की ठंड के बीच अमेरिका में उनके समर्थकों में जबरदस्त उत्साह था। लेकिन शपथ लेने के बाद उन्होंने जो भाषण दिया, उसने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी। ट्रंप ने जिस तरह से अमेरिका फर्स्ट की नीति पर काम करने की प्रतिबद्धता दिखाई है, अगर वह ऐसा करते हैं तो इसका वैश्विक असर होने वाला है। और उनके फैसले कई देशों को प्रभावित कर सकते हैं। ट्रंप ने अपने भाषण में कहा कि अमेरिका को दुनिया की महाशक्ति और सबसे महान देश बनाना है उन्हें भारत को लेकर बयान देने दिया, टेरिफ बढ़ाने का संकेत दिया। ऐसा करने से भारत के बिजनेस और अर्थव्यवस्थ पर सीधा असर पड़ने की संभावना है।
शपथ लेने के बाद ट्रंप ने जिस तरह का रवैया दिखाया है, उससे दुनिया के कई देश परेशान हैं। भारत को इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि अमेरिका अपने आर्थिक हितों को पहले रखता है, लेकिन अगर अपनी आर्थिक स्थिति को ठीक करते हुए हम दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ते हैं, तो यह चिंता का विषय है। ट्रंप जिस तरह की नीति लागू कर रहे हैं, उससे वह अमेरिका में आयात होने वाले उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा देंगे, यानी पहले से ज्यादा टैक्स लगा देंगे। अमेरिका में उत्पादों के दाम बढ़ जाएंगे और उनकी मांग कम हो जाएगी। भारत जैसे देश को नुकसान होगा, एक तो उत्पाद की लागत बढ़ जाएगी और दूसरा मांग कम होने से निर्यात कम हो जाएगा। दूसरी ओर ट्रंप कह रहे हैं कि भारत अमेरिका से आयात होने वाले उत्पादों पर ज्यादा टैक्स लगाता है। भारत को इसे कम करना चाहिए। अब इससे भारतीय राजस्व को सीधा नुकसान होगा भारत अमेरिकी उत्पादों पर अपना टेरिफ बढ़ा देगा और टेरिफ युद्ध शुरू हो जाएगा। इसके कारण अमेरिका अपने आयात के लिए किसी अन्य देश को वरीयता दे सकता है।
ट्रंप हमेशा ही एच-1बी वीजा नियमों में सख्ती के पक्षधर रहते हैं। वे अपने पहले कार्यकाल में भी एच-1बी वीजा की पॉलिसी में सख्त रहे। और इस बार जिस तरह से वो अमेरिका फर्स्ट की नीति की वकालत कर रहे हैं। इसे देखते हुए लगता है कि प्रवासियों की नौकरीयों पर संकट के बादल छाने वाले हैं। अमेरिका फर्स्ट की नीति के लिए ट्रम्प कंपनियों और संस्थानों को निर्देशित कर रहे हैं कि पहले अमेरिका के मूल निवासियों को नौकरी मिलनी चाहिए। इसे वहां रह रहे एच-1 वीजा धारक तो दूर जो वहां नागरिक बन गया है या ग्रीन कार्ड या स्थायी वर्क परमिट रखते है। उनके लिए भी नौकरी के अवसर काम हो जायेंगे। एक तो पहले ही वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते दुनिया भर में बिजनेस संस्थान अपने कर्मचारियों की छटनी कर रहे हैं। इसे से अमेरिका भी अछूता नहीं है वहां भी कंपनियां आर्थिक बोझ काम करने को अपने यहां छटनी कर रही हैं। एक खबर के अनुसार अमेरिका में भारत से संबंधित 250000 के करीब आईटी सेक्टर के कर्मचारियों को नौकरी छोड़ने की चेतावनी दी गई है। करीब 18000 को तो शीघ्र ही वापस भेजा जा रहा है।
अगर बात अमेरिका में रह रही है अवैध प्रवासियों की जाऐ तो उनके लिऐ मुश्किल दिन आने वाले हैं, ट्रंप का कहना है कि उन्हें पकड़कर वापस भेजा जाएगा। भारत के लाभभाग 6 लाख नागरिक अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे हैं जो डंकी मार्ग से वहां पहुंचे है।
जिस तरह से ट्रम्प ने पेरिस जलवाएं समझोते से अपने आप को अलग किया है, संयुक्त राष्ट्र को महत्व देने को तैयार नहीं है। इतना ही नहीं ट्रंप ने WHO जैसे संस्थान को दान देने को मना कर दिया है। इस सबका भारत पर भी असर पड़ने वाला है। क्योंकि WHO को सबसे ज़्यादा डोनेशन अमेरिका देता है। और WHO अपनी योजना पर खर्च भारत जैसे विकासशील देशो में करता है।