डॉ. अंबेडकर और दलित वोट बैंक: राजनीति या सम्मान?

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जब भी चुनाव आते हैं, हर पार्टी दलितों को लेकर चिंता जताने लगती है और खुद को उनकी सबसे बड़ी हितैषी दिखाने की कोशिश करती है। अगर मुद्दे कही अम्बेडकर जी या दलितो के अपमान से जुड़ा हो तो बस समझले फिर तो हमारे नेता दिखाने के लिए बहुत आहत हो जाते है।

भारत में दलित समुदाय की आबादी लगभग 18 करोड़ है, जो कुल जनसंख्या का करीब 18% हिस्सा बनाती है। यह वर्ग डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रति गहरी आस्था रखता है और उन्हें अपने भगवान के रूप में मानता है। यही वजह है कि जब भी अंबेडकर के सम्मान से जुड़ा कोई मुद्दा उठता है, तो राजनीति गरमा जाती है।

चाहे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) हो या विपक्षी दल, कोई भी यह जोखिम नहीं लेना चाहता कि इस बड़े और प्रभावशाली वोट बैंक को नाराज किया जाए। दलित समाज की यह ताकत किसी भी सरकार को सत्ता में ला सकती है और हटा भी सकती है। इसी कारण, जब भी अंबेडकर से जुड़े किसी कथित अपमान का मामला सामने आता है, राजनीतिक दलों के बीच होड़ मच जाती है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या यह राजनीति अंबेडकर के वास्तविक विचारों और उनके संघर्ष के प्रति सच्ची निष्ठा को दर्शाती है, या फिर यह सिर्फ वोट बैंक की चिंता तक सीमित रह गई है? अगर आज डॉ. अंबेडकर इस स्थिति को देख रहे होते, तो शायद उनकी आत्मा आहत होती। उन्होंने जिस सामाजिक न्याय और समानता के लिए जीवनभर संघर्ष किया, वह क्या महज राजनीतिक हथकंडा बनकर रह गया है?

देश को यह सोचने की जरूरत है कि अंबेडकर का सम्मान सिर्फ नारों और राजनीति तक सीमित न रहकर उनके विचारों को अमल में लाने तक पहुंचे। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

श्रद्धांजलि तो यह भी हैं कि जिस समाज के लिए उन्होंने संघर्ष किया उसके जीवन में उनके सपने को साकार करने के लिए सार्थक कदम उठाए जाए । जिससे उस शोषित समाज का वास्तिविक उद्धार हो सके।पिछले 70 सालों में संविधान में आरक्षण दिए जाने के बावजूद भी दलित समाज की आर्थिक व समाजिक स्थिति में वह परिवर्तन नहीं आ पाया है, जो एक सभ्य समाज और सशक्त देश के लिए आवश्यक है।क्या केवल आरक्षण ही उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए पर्याप्त है,क्या आथिर्क सुधार से उन्हे समाज में बराबरी का दर्जा मिल पायेगा, शायद नही। उन्हें समाजिक बराबरी देने के लिए कुछ और ऐसे कदम उठाने की जरूरत है, जिससे उनके संपूर्ण जीवन में वास्तविक बदलाव लाया जा सके?

1 thought on “डॉ. अंबेडकर और दलित वोट बैंक: राजनीति या सम्मान?”

  1. जब तक इस देश में पंडितों का वर्चस्व है, दलितों का शोषण जारी रहेगा।

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