BSP का संकट: क्या मायावती की राजनीति खत्म हो रही है?

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लेखक:मोहम्मद उस्मान नौशाही

बहुजन समाज पार्टी (BSP) का राजनीतिक सफर: अतीत की बुलंदी से वर्तमान की चुनौती तक। मायावती की रणनीति, चुनावी प्रदर्शन और भविष्य की संभावनाओं का विश्लेषण।

भूमिका: एक ऐतिहासिक आंदोलन से सत्ता की कुर्सी तक,सत्ता से शून्य तक

बहुजन समाज पार्टी (BSP) भारतीय राजनीति में वह दल है जिसने दलित, पिछड़े और वंचित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए आंदोलन से सत्ता तक का सफर तय किया। 1984 में कांशीराम द्वारा स्थापित यह पार्टी उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक समय बुलंदियों पर थी, लेकिन हाल के वर्षों में इसका प्रभाव घटता दिख रहा है।

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण में BSP की स्थिति, इसके चुनावी आंकड़े, और मायावती की रणनीति को समझना बेहद जरूरी है। क्या मायावती की राजनीति में बदलाव आया है? भाजपा से बढ़ती नजदीकी और सपा-कांग्रेस से दूरी का कारण क्या है? और क्या BSP फिर से अपने सुनहरे दौर में लौट सकती है? आइए, इन सवालों का विश्लेषण करते हैं।

BSP का ऐतिहासिक चुनावी प्रदर्शन

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में BSP का सफर

1989 – 13 सीटें, 9.41% वोट

1991 – 1 सीट, 9.44% वोट

1993 – 67 सीटें, 11.12% वोट

1996 – 67 सीटें, 19.64% वोट

2002 – 98 सीटें, 23.06% वोट

2007 – 206 सीटें, 30.43% वोट (पूर्ण बहुमत)

2012 – 80 सीटें, 25.91% वोट

2017 – 19 सीटें, 22.23% वोट

2022 – 1 सीट, 12.88% वोट

➡ 2007 BSP का स्वर्णकाल था, जब उसने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी। लेकिन 2012 से उसका ग्राफ लगातार गिर रहा है।

लोकसभा चुनावों में BSP की स्थिति

1989 – 3 सीटें, 2.07% वोट

1991 – 1 सीट, 1.61% वोट

1996 – 11 सीटें, 4.67% वोट

1998 – 5 सीटें, 4.67% वोट

1999 – 14 सीटें, 4.16% वोट

2004 – 19 सीटें, 5.33% वोट

2009 – 20 सीटें, 6.17% वोट

2014 – 0 सीटें, 4.19% वोट

2019 – 10 सीटें, 3.67% वोट

2024 – 0 सीटें, 2.07% वोट

➡ 2014 और 2024 में BSP लोकसभा में शून्य पर पहुंच गई, जो इसके गिरते प्रभाव को दर्शाता है।

BSP की केंद्र और राज्य सरकारों में भूमिका

उत्तर प्रदेश में BSP की सरकारें और गठबंधन

1. 1995 – BJP के समर्थन से पहली बार मायावती मुख्यमंत्री बनीं (3 जून से 18 अक्टूबर)।

2. 1997 – फिर से BJP के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं (21 मार्च से 21 सितंबर)।

3. 2002 – BJP के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई, मायावती 3 मई से 29 अगस्त 2003 तक रहीं।

4. 2007 – पहली बार अपने दम पर बहुमत हासिल कर 13 मई 2007 को सरकार बनाई, जो 2012 तक चली।

➡ BJP के साथ गठबंधन का फायदा BSP को 1990 के दशक में मिला, लेकिन 2007 में उसने स्वतंत्र रूप से सत्ता हासिल की।

केंद्र में BSP की भूमिका

1. 1996 – संयुक्त मोर्चा सरकार – एच.डी. देवगौड़ा / आई.के. गुजराल को बाहर से समर्थन।

2. 1998 और 1999अटल बिहारी वाजपेयी सरकार (NDA) – बाहर से समर्थन।

3. 2003 – वाजपेयी सरकार – सामरिक समर्थन।

4. 2008 – मनमोहन सिंह सरकार (UPA) – न्यूक्लियर डील पर UPA से समर्थन वापस लिया।

5. 2014 और 2019 – मोदी सरकार – विपक्ष में रही, लेकिन खुलकर BJP का विरोध नहीं किया।

➡ BSP ने कभी केंद्र में मंत्री पद नहीं लिया, लेकिन समय-समय पर रणनीतिक समर्थन दिया।

मायावती की मौजूदा रणनीति: भाजपा से नजदीकी, सपा-कांग्रेस से दूरी

1. सपा से दूरी क्यों?

1995 गेस्ट हाउस कांडसपा समर्थकों ने मायावती पर हमला किया, जिसके बाद दुश्मनी स्थायी हो गई।

मुस्लिम वोटों पर प्रतिस्पर्धा – सपा का मुस्लिम-यादव गठबंधन BSP के वोट बैंक को चुनौती देता है।

2019 गठबंधन की असफलता – चुनाव में सपा के यादव वोट BSP को ट्रांसफर नहीं हुए, जिससे मायावती नाराज हो गईं।

➡ नतीजा: BSP और सपा में हमेशा से अविश्वास बना रहा।

2. कांग्रेस से दूरी क्यों?

दलित वोट बैंक पर दावेदारी – कांग्रेस भी दलितों को अपने पाले में लाना चाहती है।

प्रियंका गांधी की चुनौती – यूपी में कांग्रेस ने BSP को कमजोर करने की रणनीति अपनाई।

➡ नतीजा: मायावती कांग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहती हैं।

3. भाजपा से नजदीकी क्यों?

✅ भ्रष्टाचार और CBI-ED जांच का डर? – BSP नेताओं पर कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिससे BJP का खुला विरोध करने से बचा गया।

BJP की दलित राजनीति – BJP ने “जय भीम, जय श्रीराम” के जरिए दलित वोटों में सेंध लगाई।

✅ सामरिक समीकरण – मायावती BJP से सीधा टकराव नहीं चाहतीं, ताकि राजनीतिक गुंजाइश बनी रहे।

➡ नतीजा: BJP के खिलाफ खुलकर न बोलने की रणनीति अपनाई गई।

भविष्य की रणनीति: BSP की वापसी संभव है?

ब्राह्मण-दलित गठबंधन को फिर से मजबूत करना – 2007 की तर्ज पर सर्वजन हिताय मॉडल को अपनाना।

मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने की कोशिश – सपा को कमजोर कर मुस्लिम-दलित गठबंधन बनाना।

नई युवा नेतृत्व की खोज – BSP को एक नई पीढ़ी के नेताओं की जरूरत है।

➡ अगर मायावती इन रणनीतियों पर काम करती हैं, तो 2027 के यूपी चुनाव में BSP फिर से बड़ी ताकत बन सकती है।

निष्कर्ष: BSP की राजनीति किस दिशा में जा रही है?

BSP एक समय उत्तर प्रदेश की सबसे मजबूत पार्टी थी, लेकिन अब यह संघर्ष कर रही है।

भाजपा के खिलाफ पूरी तरह न खड़े होकर मायावती खुद को कानूनी जोखिमों से बचाने की कोशिश कर रही हैं।

सपा और कांग्रेस से दूरी बनाए रखना उनकी रणनीति का हिस्सा है, ताकि उनका मूल वोट बैंक कायम रहे।

भविष्य में अगर BSP को वापसी करनी है, तो उसे नए समीकरण और युवा नेतृत्व पर ध्यान देना होगा।

➡ क्या मायावती फिर से सत्ता में लौट पाएंगी? 2027 का चुनाव इस सवाल का सबसे बड़ा जवाब होगा।

इस लेख में प्रस्तुत जानकारी विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है, जिनमें भारत निर्वाचन आयोग के आधिकारिक आंकड़े, नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट, बिजनेस स्टैंडर्ड और एबीपी लाइव की समाचार कवरेज शामिल हैं।

(नोट: यह लेख पूरी तरह राजनीतिक विश्लेषण पर आधारित है। आपकी राय क्या है? कमेंट में बताएं!)

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