दिल्ली में पिछले दो चुनाव आम आदमी पार्टी भारी बहुमत से जीत चुकी है। इस बार भी उनकी कई योजनाएं मतदाताओं पर अच्छा प्रभाव डाल सकती हैं, जैसे शिक्षा की स्थिति पहले से बेहतर हुई है, बिजली व पानी के बिलों में भारी कमी, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा और मोहल्ला क्लीनिक आदि कुछ प्रभावशाली योजनाएं हैं। इनका मुकाबला करने के लिए भाजपा का मुख्य हथियार हिन्दु वोटो का ध्रुवीकरण ही हो सकता है। कांग्रेस भी पूरी ताकत से चुनाव लड़ रही है, लेकिन उनका जमीनी नेटवर्क अब ध्वस्त हो चुका है I इसलिए ऐसा नहीं लगता कि वे कुछ खास कर पाएंगे। अगर वे मजबूती से लड़ेंगे तो आम आदमी पार्टी को निश्चित तौर पर नुकसान हो सकता है ।

दिल्ली विधानसभा चुनाव अपने अंतिम चरण में है, और आरोप-प्रत्यारोप का दौर जोरों पर है। राजनीतिक दलों के बीच तीखी बयानबाजी और जवाबी हमले जारी हैं। चुनाव से करीब दो साल पहले अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं पर आबकारी नीति मामले में भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। इस घटनाक्रम से पार्टी की छवि प्रभावित हुई, जिसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब पूरी तरह भुनाने में जुटी है। भाजपा आम आदमी पार्टी को भ्रष्ट साबित करने का हरसंभव प्रयास कर रही है। हालांकि, अदालत से सभी नेताओं को जमानत मिल चुकी है और अब तक कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के मामले अभी भी लंबित हैं, जिससे पार्टी की छवि पर दाग जरूर लगा है।

लेकिन इस बार के चुनावों की खास बात ये है कि हर पार्टी खुद को सब से बड़ा हिंदू प्रमाणित की कोशिश में लगी है। हिंदू रक्षा, पुजारी, यमुना मैया, चारधाम यात्रा और सनातन सेवा समिति जैसे मुद्दे प्रमुखता से उठाए जा रहे हैं I इस बीच उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की भी एंट्री हो गई है, जिनकी छवि कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करने की है। 23 जनवरी को अपनी पहली रैली में उन्होंने “बटेंगे तो कटेंगे” का मुद्दा तो नहीं उठाया बल्कि बांग्लादेशी घुसपैठियों और उनके भारत में अवैध रूप से रहने, उन्हें पनाह देने वालों पर हमला बोला हैं। जिस तरह से उन्होंने हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में “बटेंगे तो कटेंगे” को मुख्य चुनावी नारा बनाया, उससे हिंदू मुस्लिम की राजनीति चुनाव के केंद्र में आ गई ,क्योंकि जब पोस्टर पर यह नारा लिखा होता है तो भाजपा की तरफ से कोई आपत्ति नहीं होती। भाजपा की मुख्य योजना यही है कि वोटों का ध्रुवीकरण कैसे किया जाए, ताकि हिंदू वोट उनके पक्ष में आएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक नारा गढ़ा है। “एक हैं तो सेफ़” इसका उद्देश्य भी बड़ी संख्या में हिंदू मतदाताओं को एक मंच पर लाना है। और इन नारों का असर महाराष्ट्र और हरियाणा में पहले ही देखने को मिल चुका है। क्योंकि चुनाव से पहले इन दोनों राज्यों में माहौल भाजपा के पक्ष में नहीं था। लेकिन जब नतीजे आए तो अप्रत्याशित रूप से भाजपा के पक्ष में रहे। इन नतीजो को विवादित नारों से जोड़कर देखा गया।
भाजपा केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने और हरियाणा व महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद आत्मविश्वास से भरी हुई है। केंद्र सरकार द्वारा एक फ़रवरी को प्रस्तुत आम बजट में मध्यम वर्ग को ध्यान में रखकर की गई घोषणाएं भाजपा के पक्ष में असर डाल सकती हैं। हालांकि, चुनाव आयोग पहले ही स्पष्ट कर चुका था कि बजट में दिल्ली को लेकर कोई विशेष योजना नहीं बनाई जाएगी, जिससे चुनाव पर सीधा प्रभाव न पड़े। बावजूद इसके, 12 लाख तक की आय पर कर छूट और वरिष्ठ नागरिकों को दी गई कर राहत से मध्यम वर्ग को आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। दिल्ली की आबादी में 50% से अधिक मध्यम वर्ग का हिस्सा है, जिससे यह फैसले महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
कांग्रेस भी चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश कर रही है। राहुल गांधी तक सीधे अरविंद केजरीवाल पर हमला बोल रहे हैं। कांग्रेस दलितों और मुस्लिम मतदाताओं को साधने का प्रयास कर रही है, जबकि पिछले दो चुनावों में इन वर्गों ने आम आदमी पार्टी को खुलकर समर्थन दिया था।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि आम आदमी पार्टी पिछले तीन बार से सत्ता में है, हालांकि पहला कार्यकाल छोटा था। इसलिए सत्ता विरोधी भावना स्वाभाविक है। लेकिन केजरीवाल एंड कंपनी को अपने द्वारा किए गए सुधार कार्य, बिजली व पानी के बिलों में कमी, महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा और मोहल्ला क्लीनिक आदि पर भरोसा है कि ये सब इस बार भी उनकी नैया पार लगा सकते हैं।
अब देखना यह होगा कि दिल्ली की जनता इस चुनाव में किसे अपना समर्थन देती है।
बहुत पारखी नज़र वाला विश्लेषण। अच्छा लेख।
Thaks