एग्जिट पोल्स भारत में हर चुनाव के बाद चर्चा का विषय बन जाते हैं। ये चुनावी नतीजों का अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कई बार सटीक साबित होते हैं और कई बार पूरी तरह असफल। पिछले कुछ दशकों में एग्जिट पोल्स ने भारतीय राजनीति और शेयर बाजार को भी प्रभावित किया है। आइए जानते हैं भारत में एग्जिट पोल्स का इतिहास, उनकी सटीकता और उन पर उठे सवालों के बारे में।
एग्ज़िट पोल का अर्थ:
चुनाव के दिन मतदान केंद्रों से निकलने वाले मतदाताओं से पूछे गए प्रश्नों के आधार पर किया गया सर्वेक्षण, जो चुनावी नतीजों का पूर्वानुमान देता है।
भारत में एग्जिट पोल्स का इतिहास-
CSDS सेन्टर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाईटीज ने 1960 में ही स्वदेशी चुनाव का जनमत संग्रह, पूर्वानुमान के आकड़े संग्रहित करके विश्लेषण करना आरम्भ कर दिया था । लेकिन तब यह कार्य सीमित ही था । इसका नजरिया पेशेवाराना नहीं था। धीरे-धीरे इन विशलेषणों व इनके आकड़ो को राजनीतिक पार्टियां, न्यूज़ ऐजेन्सीज व चुनाव आयोग आदि प्रयोग में लाने लगे।
1980 के दशक तक मीडिया के पोल सर्वेक्षण प्रारम्भ नही हुए थे। इस अवधि के दौरान चुनाव विशलेषक प्रणय राय ने डेविड बटलर के साथ मिलकर भारतीय चुनावों पर गहन अध्ययन किया उन्होंने अपने शोध और निषकर्षो को अपनी पुस्तक “द कम्पेंडियम ऑफ़ इंडियन इलेक्शन्स” में संक्लित किया जिसके सह लेखक प्रणय राय, डेविड बटलर और अशोक लाहड़ी हैं। यह प्रकाशन भारत में चुनावी रुझानों व विशलेषण के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।
1990 के दशक में यह प्रक्रिया ज्यादा लोकप्रिय हुई। शुरुआती दौर में ये अनुमान सीमित संसाधनों से किए जाते थे, लेकिन अब बड़े मीडिया हाउस और सर्वे एजेंसियां डेटा एनालिटिक्स और गणितीय मॉडल का उपयोग करती हैं।
महत्वपूर्ण चुनाव और एग्जिट पोल्स की सटीकता-
1. 1996 लोकसभा चुनाव – एग्जिट पोल्स ने त्रिशंकु संसद की भविष्यवाणी की थी, जो सही साबित हुई।
2. 1998 और 1999 लोकसभा चुनाव – बीजेपी की बढ़त का अनुमान लगाया गया था, जो सही निकला।
3. 2004 लोकसभा चुनाव – अधिकांश एग्जिट पोल्स ने एनडीए (अटल बिहारी वाजपेयी) की जीत का दावा किया, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सत्ता में आ गया।
4. 2014 लोकसभा चुनाव – एग्जिट पोल्स ने नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी की बड़ी जीत का सही अनुमान लगाया।
5.2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव – एग्जिट पोल्स ने बीजेपी को मजबूत दिखाया, लेकिन आम आदमी पार्टी (AAP) ने 70 में से 67 सीटें जीतकर चौंका दिया
6. 2019 लोकसभा चुनाव – सभी एग्जिट पोल्स ने बीजेपी की भारी जीत की भविष्यवाणी की, जो सही साबित हुई।
7.2024 का ले लेते हैं,लगभग सभी सर्वे कम्पनियां NDA की आसानी से सत्ता में वापसी दिखा रही थी, और अधिकंश ने मोदी जी को 400 उसके पार सीटस कीभाविष्यवाणी की थी । लेकिन जब परिणाम आये तब भाजपा 240 सीटस तक सीमित रही जोड़ तोड़ करके वे सरकार बना पाये। इसके बाद 2024 में हरियाणा विधान सभा चुनाव में भी एग्ज़िट पोल असफल रहे। कांग्रेस को भारी बहुमत से जीता हुआ बताया गया अंततः बीजे पी ने सरकार बनाई। 2024 मे ही महाराष्ट्र विधान सभा में भी एग्जिट पोल सटीक नही रहे।
सत्तारूढ़ दल और एग्जिट पोल्स का प्रभाव
1. प्रचार का माध्यम:
कई बार सत्तारूढ़ दल एग्जिट पोल्स का उपयोग अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए करता है।अगर पोल्स जीत का संकेत देते हैं, तो समर्थकों में जोश आता है और विपक्षी दलों का मनोबल गिर सकता है।
2. शेयर बाजार पर असर:
जब एग्जिट पोल्स किसी स्थिर सरकार की भविष्यवाणी करते हैं, तो शेयर बाजार में उछाल आता है।
2014,2019और 2024 के लोकसभा चुनावों में जब एग्जिट पोल्स ने बीजेपी की सरकार बनने का अनुमान लगाया, तो सेंसेक्स और निफ्टी में जबरदस्त तेजी देखी गई।वहीं, अगर एग्जिट पोल्स अनिश्चितता दिखाते हैं, तो बाजार में गिरावट देखी जाती है।
एग्जिट पोल्स से जुड़े विवाद और आलोचना
1. गलत अनुमानों का इतिहास:
कई बार एग्जिट पोल्स पूरी तरह गलत साबित हुए हैं। 2004 में वाजपेयी सरकार की जीत का अनुमान गलत निकला, और 2015 के दिल्ली चुनाव में बीजेपी की जीत का दावा फेल हो गया।2024 का ले लेते हैं,लगभग सभी सर्वे कम्पनियां NDA की आसानी से सत्ता में वापसी दिखा रही थी, और अधिकंश ने मोदी जी को 400 उसके पार सीटस कीभाविष्यवाणी की थी । लेकिन जब परिणाम आये तब भाजपा 240 सीटस तक सीमित रही जोड़ तोड़ करके वे सरकार बना पाये , तब प्रश्न उठा क्या यह सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाने के लिये क्या गया जिससे NDA के पक्ष में माहौल बन जाया। इतना ही नही एग्ज़िट पोल आने से परिणाम आने तक शेयर बजार में जमकर मुनाफ़ा कमाया गया लगभग 36000 करोड़ का मुनाफा हुआ। जिसे एग्ज़िट पोल से जोड़कर देखा गया । परिणाम आने पर शेयर मार्किट गिरी। जिससे निवेशको को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
2. राजनीतिक प्रभाव:
विपक्षी दल कई बार आरोप लगाते हैं कि एग्जिट पोल्स को जानबूझकर पक्षपाती तरीके से पेश किया जाता है ताकि मतदाताओं की मानसिकता प्रभावित हो।
3. चुनाव आयोग के नियम:
2009 में चुनाव आयोग ने नियम बनाया कि मतदान खत्म होने से पहले एग्जिट पोल्स के नतीजे नहीं दिखाए जा सकते।इससे फर्जी या भ्रामक अनुमानों को रोकने में मदद मिली है।
कुल मिलाकर अनुमान अनुमान ही है बिल्कुल 50:50 की तरह।
काफी सटीक लेख, विस्तृत एवं तर्कपूर्ण सराहना और आलोचना।
आपको साधुवाद।
समर्थन के लिए धन्यवाद, आपका समर्थन मेरा मनोबल बढ़ा रहा है।👏