जब से भारतीय जनता पार्टी ने नीतीश कुमार के काम में दखलंदाजी की है, तब से नीतीश कुमार असहज महसूस करने लगे हैं। यही वजह है कि नीतीश कुमार स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पा रहे हैं, बल्कि दबाव में सरकार चला रहे हैं।पिछले साल भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जब उन्होंने आरजेडी छोड़कर एनडीए गठबंधन के साथ सरकार बनाई थी। तब भी कहा गया था कि वे आरजेडी के दबाव में काम कर रहे हैं और आरजेडी के शीर्ष नेताओं से अनबन होने के बाद उन्होंने गठबंधन छोड़ दिया था। जब से संजय झा को जेडीयू का अध्यक्ष बनाया गया है, तब से यह कहा जा रहा है कि नीतीश की शक्तियां और कार्यक्षेत्र सीमित हो गए हैं। क्योंकि अमित शाह के हस्तक्षेप से संजय झा को अध्यक्ष बनाया गया है। इतना ही नहीं, नीतीश कुमार के पुराने मित्र और भरोसेमंद ललन सिंह नीतीश से ज्यादा बीजेपी के प्रति वफादार नजर आ रहे हैं।क्योंकि ललन सिंह को अध्यक्ष पद से हटाकर ही संजय झा को अध्यक्ष बनाया गया था।

नीतीश ने कई ऐसे फैसले लिए, जिसके जरिए वो भविष्य की राजनीति साधना चाहते हैं, जिसमें बीजेपी सहयोग नहीं कर रही है। मसलन, नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना बड़े जोर शोर से कराई, लेकिन उसे उस तरह लागू नहीं कर पा रहे हैंI क्योंकि बीजेपी दिखावे के लिए इस मुद्दे पर हां भले ही कह दे, लेकिन ये उनके राजनीतिक एजेंडे में नहीं है I नीतीश पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों को खुश करना चाहते हैं. इसी तरह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाना तो दूर, नीतीश केंद्र सरकार से कोई बड़ी योजना भी नहीं दिला पाए हैं I क्योंकि मोदी ने अब तक बिहार को कोई विशेष पैकेज नहीं दिया है I इसी बात से नीतीश नाराज हैं I इसीलिए उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को 32 पन्नों का पत्र लिखा है, जिसका मकसद बिहार को ज्यादा से ज्यादा विकास योजनाओं से लाभान्वित करना है I इसमे बिहार की दशा बदलने के लिए बहुत से मागें रखी गई है। इस पत्र को राजनीतिक विश्लेशक दूसरे नजरिये भी देख रहे हैं। उनका मानना है कि ये राजनीतिक उद्देश्य से लिखा गया है। नीतीश एक तीर से दो शिकार करना चाहते हैं। एक ये जनता को दिखाना चाहते हैं कि हम बिहार का विकास करना चाहते हैं लेकिन केंद्र सरकार सहयोग नहीं कर रही है। दूसरा अपने दल के उन नेताओं को चेताना चाहते है जो बीजेपी के निकट है कि अगर आपने जेडीयू को तोड़ा तब जनता आप को विलेन समझेगी।

नीतीश बहुत ही मंझे हुए नेता हैं वो विषम परिस्थितियों में सरकार जानते हैं और राजनीति करना भी। लेकिन फिर भी वो डरे हुए हैं अगर वो बीजेपी से गठबंधन तोड़ते तो उनकी पार्टी मैं ही बगावत ना हो जाऐ, और पार्टी टूट ना जाए। और उनके राजनीतिक भविष्य का अंत ना हो जाए। चुनाव बाद जो हाल महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे को हुआ उससे भी वो भलीभंती परिचित है। इसलिए वो आने वाले विधान सभा चुनाव के लिए बीजेपी पर दबाव बनाकर अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। और ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत कर वो बिहार की राजनीति के केंद्र में बने रहना चाहते हैं।