क्या नीतीश दबाव की राजनीति कर रहे हैं?

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नीतीश कुमार एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। उन्हें यह अच्छी तरह पता है कि किससे कैसे काम करवाना है। जरूरी नहीं है कि वह जो कहते हैं, वही करें। उनके दिमाग में एक विकल्प रहता है कि उन्हें क्या करना है और कब करना है। इसीलिए उन पर अवसरवादी होने का आरोप लगता है। उन्होंने इन दिनों भी कुछ ऐसा ही सस्पेंस बना रखा है। कभी वह अपने पोस्टरों के जरिए दिल्ली की राजनीति करने का इशारा करते हैं, जिसका मकसद उन्हें अगले प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करना या फिर अपनी प्रगति यात्रा से भाजपा को दूर रखना होता है। क्योंकि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा उन्हें उनकी इच्छा के मुताबिक सीटें देने को तैयार नहीं है और दिल से उन्हें मुख्यमंत्री पद भी नहीं देना चाहती है। भले ही अमित शाह और बिहार के उपमुख्यमंत्री के बयानों के बाद भाजपा बैकफुट पर चली गई हो और अनिच्छा से उनसे उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने और मुख्यमंत्री बनने को कहा हो, लेकिन महाराष्ट्र में शिंदे की दुर्दशा से वह अनजान नहीं हैं। इसीलिए वह अपनी नाराजगी दिखाकर ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं।

खबरों के मुताबिक, वे एनडीए गठबंधन से 120 से 130 सीटें चाहते हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनके बेहतरीन प्रदर्शन की वजह से वे अपनी बात मजबूती से रख रहे हैं। जबकि बीजेपी चाहती है कि वे पिछले विधानसभा चुनाव में जीती गई सीटों की संख्या के बराबर या कुछ और सीटों पर चुनाव लड़ें ताकि बीजेपी अधिक से अधिक सीटें जीत सके और चुनाव के बाद अपने मुख्यमंत्री बनाने लिए नीतीश पर दबाव बना सके। इसीलिए नीतीश पाला बदलने की अफ़वाहों का कठौरता से खंडन नहीं करते। वे आरजेडी पर भी दबाव बनाना चाहते हैं कि उनके बिना आरजेडी भी सत्ता में नहीं आ सकती हैं ।

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