अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का होना आवश्यक है, लेकिन हर परिस्थिति में इसकी अभिव्यक्ति उपयुक्त नहीं हो सकती।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कोई भी व्यक्ति किसी समाज, समुदाय या विशेष वर्ग को प्रताड़ित कर सकता है। दुर्भाग्यवश, आज भी इस विषय पर कोई स्पष्ट अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं है, और इसी कमी का लाभ उठाकर कुछ लोग अपने मन की भड़ास निकालते रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप गंभीर प्रतिक्रियाएँ होती हैं, जो कई बार सांप्रदायिक दंगों और वैमनस्य का रूप ले लेती हैं।
हाल ही में स्वीडन में सलवान मोमिका की हत्या का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि 1 फरवरी को डेनमार्क में तुर्की दूतावास के बाहर रासमस पालुदान नामक डेनिश-स्वीडिश दक्षिणपंथी नेता ने सार्वजनिक रूप से कुरआन जलाया। उसने इसे सलवान मोमिका को श्रद्धांजलि बताया।सलवान मोमिका की 29 जनवरी, बुधवार को स्वीडन में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस समय वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म TikTok पर लाइव थे। मोमिका वही व्यक्ति थे जिन्होंने 2023 में स्टॉकहोम की सेंट्रल मस्जिद के बाहर सार्वजनिक रूप से कुरआन जलाया था। वह इराक की ईसाई मिलिशिया से जुड़े हुए थे।
रासमस पालुदान ने अमेरिकी संगठन RAIR से बातचीत में कहा कि “मुसलमान और इस्लाम कभी भी हमारे साथ सद्भाव से नहीं रह सकते, इसलिए उन्हें निर्वासित किया जाना चाहिए और जहां से वे आए हैं, वहीं वापस भेज देना चाहिए। अन्यथा, हमें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।”
पालुदान कोपेनहेगन की तीन मस्जिदों के सामने प्रदर्शन करना चाहता था, लेकिन पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा कारणों से इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया। पालुदान इससे पहले स्वीडन में भी इस्लाम विरोधी प्रदर्शन कर चुका है, जिसके कारण वहाँ माल्मो, नॉरकोपिंग और लिंकोपिंग जैसे शहरों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। इन घटनाओं के बाद उसकी स्वीडन, बेल्जियम और कई अन्य देशों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
रासमस पालुदान एक डेनिश-स्वीडिश दक्षिणपंथी नेता, वकील और कार्यकर्ता है, जो अपने इस्लाम और मुस्लिम विरोधी बयानों के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। उसने 2017 में “स्ट्रैम कर्स” (हार्ड लाइन) नाम से एक राजनीतिक पार्टी भी बनाई। पालुदान कई इस्लाम विरोधी प्रदर्शनों में भाग ले चुका है और फिर से ऐसा कर रहा है।उस पर नस्लवाद, मानहानि और लापरवाही से गाड़ी चलाने जैसे कई मामले दर्ज हैं, जिनमें से कई मामलों में उसे दोषी ठहराया जा चुका है। विश्व स्तर पर मानवाधिकार संगठनों और अन्य संस्थाओं ने उसके विचारों की कड़ी आलोचना की है और उसके बयानों की निंदा करते रहे हैं।