शहिदे कर्बला की याद में ऐतिहासिक जुलूस
मुहर्रम की सात तारीख को हर वर्ष निकलने वाले अलम जुलूस की शुरुआत पारंपरिक रूप से या हुसैन के नारों के साथ मोहल्ला मियां सराय बंदगी शाह मियां की दरगाह से दोपहर 2 बजे हुई। यह जुलूस किले मियां सराय, हातिम सराय, डुंगर सराय के इमामबाड़ों को शामिल करते हुए एजेंटी चौराहा पहुँचा, जहाँ खग्गू सराय व बेगम सराय के अलम शामिल हुए। यहाँ से जुलूस चमन सराय के इमामबाड़ों से होता हुआ मीरान शाह की दरगाह व इमामबाड़े पर पहुँचा। यहाँ से मंडी किशनदास सराय, नूरियों सराय, सैफ खान सराय, जगत, चौधरी सराय, चमन सराय, मोहल्ला नाला आदि के अलमों को शामिल करते हुए जुलूस सब्ज़ी मंडी कोट, पूर्वी परछाई मार्केट से होकर कोट, जामा मस्जिद के विभिन्न इमामबाड़ों पर पहुँचा। यहाँ के अलम भी शामिल हुए। इसके बाद कोट का ढाल , महमूद ख़ां सराय होते हुए, न्यारियों के इमामबाड़े पर व इमामबाड़ा अल्लाहदीन खग्गू सराय रूका तथा यहाँ के अलमौ को शामिल कर दीपा सराय चौक, पछ्छियों, पेपट पूरा,तिमरदास सराय से होकर जुलूस फिर खग्गू सराय पहुँचा। यहीं से अलमदार या हुसैन की सदाएं लगाते हुए अपने-अपने इमामबाड़ों को लौट गए।
आलमदारों की अक़ीदत और रूहानी माहौल
यह जुलूस विशेषकर हज़रत अब्बास अलमदार की शहादत को भी याद करते हुए निकाला जाता है। अलमदार हाथों में अलम थामे मुंह से ‘या हुसैन, या हुसैन, या अली,हैदर मौला, अली मौला’ के नारे बुलंद कर रहे थे। इनकी अक़ीदत देखते ही बनती थी — पूरा माहौल ग़मगीन और रूहानी बना हुआ था। जुलूस के रास्ते भर शरबत व पानी की सबीलें, नज़र-नियाज़ के लंगर लगे रहे। जुलूस में हजारों की संख्या में अलम शामिल थे और झंडों पर मोहम्मद, अली, फातिमा, हसन, हुसैन व अन्य इस्लामी नारे लिखे हुए थे। इस जुलूस की विशेषता यह हैं की यह सुन्नी व शिया दोनों वर्ग मिलकर एक साथनिकालते हैं ।
जुलूस को देखने के लिए मानो पूरा शहर – मर्द, औरतें और बच्चे सड़कों पर थे। जगह-जगह आम जनता, सामाजिक संस्थाओं और राजनीतिक व्यक्तियों ने जुलूस का स्वागत किया। प्रशासनिक सतर्कता और जनता के सहयोग से यह जुलूस पूरी तरह शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ।
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Source News: samachar24x7.online
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