डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनाने के लिए भारतीय मूल के लोगों ने काफी प्रयास किए, यहाँ तक कि हवन और प्रार्थनाएँ तक कीं। लेकिन उनके राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों पर हमलों में इजाफा हुआ है। अब तक दो भारतीयों की हत्या हो चुकी है, और कई मामलों में हमलावरों ने साफ तौर पर कहा— “अपने देश वापस जाओ।” इस तरह की सोच पहले अमेरिका में नहीं थी।
यह घटनाएँ जिस ओर इशारा कर रही हैं, उससे भारतीय मूल के लोगों का भविष्य अंधकारमय लग रहा है। ये सिर्फ अपराध नहीं, बल्कि एक बड़ी राजनीतिक समस्या का नतीजा हैं। ट्रंप की विभाजनकारी राजनीति और प्रवासियों को नौकरी छीनने वाले के रूप में पेश करने की रणनीति ने अमेरिकी समाज के एक हिस्से में नफरत भर दी है। यह न केवल भारतीयों बल्कि अमेरिका और पूरी दुनिया के लिए खतरनाक प्रवृत्ति है। अमेरिका, जो सभ्य समाज कहलाता था और पूरी दुनिया को मानवता का पाठ पढ़ाने का दावा करता था, अब खुद नफरत की राजनीति के जाल में फँसता दिख रहा है।
भारतीय ही निशाने पर क्यों?
अमेरिका के बसने का इतिहास यही कहता है कि यहाँ दुनिया के कई देशों के लोग आकर बसे हैं। फिर भारतीय मूल के लोग ही खास निशाने पर क्यों आ रहे हैं? इसका एक बड़ा कारण उनकी पहुँच, बिजनेस, हाई-क्लास सर्विस सेक्टर में भागीदारी और बढ़ती आर्थिक ताकत हो सकती है।
भारतीय राजनेताओं की जिम्मेदारी
भारत से विदेश यात्रा पर जाने वाले नेताओं को सिर्फ प्रवासी भारतीयों से मिलने तक खुद को सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि अमेरिका पर अपने नागरिकों की सुरक्षा और सम्मान के लिए दबाव बनाना चाहिए। साथ ही, उन्हें मेज़बान देश के आम नागरिकों, छात्रों और नेताओं से संवाद स्थापित करना चाहिए तथा भारतीयों का पक्ष मज़बूती से रखना चाहिए।
अतीत में, भारतीय प्रधानमंत्री और प्रतिनिधिमंडल (डेलीगेट्स) जब विदेश जाते थे, तो वहाँ के नागरिकों और छात्रों से भी मिलते थे। इससे भारतीयों और वहाँ की जनता के बीच नज़दीकी बढ़ाने का प्रयास किया जाता था। प्रवासी भारतीयों के लिए दूतावासों में छोटे और औपचारिक कार्यक्रम होते थे। लेकिन हाल के वर्षों में बड़े स्तर पर प्रवासी रैलियाँ आयोजित होने लगी हैं। इससे राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएँ तो पूरी हो रही हैं, लेकिन स्थानीय आबादी से दूरियाँ भी बढ़ रही हैं।
जरूरत इस बात की है कि हर देश में उसके नागरिकों को सम्मान मिले और मेल-जोल का माहौल बना रहे।
समाधान क्या है?
सबसे बड़ी चिंता यह है कि इस तरह की घटनाओं को कैसे रोका जाए। अगर भारतीय समुदाय को विदेशों में सुरक्षित रखना है, तो उन्हें वहाँ के समाज में घुलने-मिलने देना होगा, न कि अलग पहचान कर अलग-थलग कर देना होगा। आखिरकार, भारतीय समुदाय भी अब उस देश का किसी न किसी रूप में एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है।